Democracy Trust Deficit Pakistan : रिपोर्ट में दावा, संसद निर्णय ही नहीं ले पा रही, 'हितों का टकराव' बड़ी वजह

हितों के टकराव से पाकिस्तान संसद पर उठे सवाल, रिपोर्ट में खुलासे
पाकिस्तान: रिपोर्ट में दावा, संसद निर्णय ही नहीं ले पा रही, 'हितों का टकराव' बड़ी वजह

इस्लामाबाद: पाकिस्तान की संसद अपने निर्णय लेने में काफी दिक्कतों का सामना कर रही है। वजह हितों का टकराव है, जिससे आम लोगों का विश्वास डिगा है और वो इसे बड़े व्यवसायियों का क्लब मानते हैं। ये सब दावे एक रिपोर्ट में किए गए हैं।

लोक नीति विशेषज्ञ आमिर जहांगीर ने द न्यूज़ इंटरनेशनल के लिए लिखे एक लेख में लिखा है कि जोखिम आर्थिक और राजनीतिक दोनों हैं क्योंकि प्रत्येक घोटाला लोकतांत्रिक संस्थाओं की वैधता को कमजोर करता है, जिससे निराशा बढ़ रही है।

उन्होंने कहा, "हमारे लोकतंत्र की विश्वसनीयता तब कमजोर होती है जब प्रत्यक्ष व्यावसायिक हित वाले सांसद उन नीतियों और परियोजनाओं पर निर्णय लेने लगते हैं जिनसे उन्हें लाभ होता है। यह कमजोरी पाकिस्तान की सीनेट और नेशनल असेंबली की स्थायी समितियों में सबसे ज्यादा स्पष्ट है, जहां अक्सर निरीक्षण अवसर में बदल जाता है। हाल ही में एक डोनर फंडेड प्रोजेक्ट में कुछ ऐसा ही देखा गया, जिसने फिक्र और बढ़ा दी है।"

विशेषज्ञ ने उल्लेख किया कि वर्षों से, राजनीतिक रूप से जुड़ी कंपनियों का एक छोटा समूह, जिन पर अक्सर कार्टेल-शैली की सामूहिक बोली लगाने का आरोप लगाया जाता है, पाकिस्तान के बुनियादी ढांचे के क्षेत्र पर हावी रहा है। एक प्रतिस्पर्धी विदेशी सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी का प्रवेश इस प्रवृत्ति को बाधित करता है। संसदीय समितियों का उपयोग करके पुनः निविदा के लिए दबाव डालकर, निहित स्वार्थ पारदर्शिता की रक्षा नहीं कर रहे हैं, बल्कि अपने कार्टेल की रक्षा कर रहे हैं। यही कारण है कि हितों के टकराव से बचाव के उपायों की आवश्यकता है।

पाकिस्तान में विश्व आर्थिक मंच के कंट्री पार्टनर इंस्टीट्यूट का नेतृत्व करने वाले जहांगीर बताते हैं कि 2020 में हुए चीनी संकट ने राजनीतिक समर्थन प्राप्त उद्योग कार्टेल की ताकत को उजागर किया। सरकारी जांच आयोग ने खुलासा किया कि कैसे प्रमुख राजनीतिक परिवारों ने सब्सिडी, हेरफेर की कीमतों और अनुकूल निर्यात नीतियों के जरिए पैसा कमाया। उस समय, इनमें से कुछ नेता वाणिज्य और उद्योग की देखरेख करने वाली संसदीय समितियों के सदस्य थे। इससे नियामकीय समायोजन हुआ और उपभोक्ताओं को बढ़ी हुई कीमतें चुकानी पड़ीं, जबकि कार्टेल अपना प्रभुत्व मजबूत करते रहे।

उन्होंने लिखा, हितों का टकराव तब भी स्पष्ट होता है जब टीवी चैनलों या नेटवर्क में प्रत्यक्ष हिस्सेदारी रखने वाले सांसद पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया नियामक प्राधिकरण (पेमरा) के नियमों, प्रसारण नीतियों या विज्ञापन नियमों का मसौदा तैयार करने में भाग लेते हैं।

उन्होंने कहा, "मीडिया एकाधिकार से लाभ उठाने वाले लोग प्रतिस्पर्धा, स्वामित्व संकेंद्रण (किसी विशेष क्षेत्र, फर्म या संपत्ति में स्वामित्व का कुछ ही लोगों या संगठनों के हाथों में है) या नैतिक मानकों को निष्पक्ष रूप से कैसे नियंत्रित कर सकते हैं? मीडिया की विविधता और स्वतंत्रता का क्षरण, बदले में, जनता के विश्वास और लोकतंत्र को ही कमजोर करता है। चीनी मिलों के कार्टेल, मीडिया एकाधिकार, रियल एस्टेट साम्राज्य और अब बुनियादी ढांचे के ठेकों को मिलाकर, पाकिस्तान की समस्या प्रणालीगत है।"

जहांगीर ने आगे कहा, "पाकिस्तान में प्रासंगिक कानून तो हैं, लेकिन वे अपर्याप्त हैं। संविधान का अनुच्छेद 63(1)(डी) उस सदस्य को अयोग्य घोषित करता है जो "पाकिस्तान की सेवा में लाभ का पद" धारण करता है।

अनुच्छेद 63(1)(ओ) इसे उन सदस्यों पर भी लागू करता है जिनके आश्रित वैधानिक निकायों में कार्यरत हैं। हालांकि, दोनों ही धाराएं सरकारी सेवा पर ही लागू होती हैं, न कि विशाल पारिवारिक उद्यमों या ठेका फर्मों पर। चुनाव अधिनियम, 2017 (धारा 137) के तहत सांसदों को अपनी संपत्ति घोषित करनी होती है, जबकि धारा 111 झूठी घोषणाओं के लिए निलंबन या अयोग्यता का प्रावधान करती है। लेकिन इन व्यावसायिक हितों से जुड़े कानून बनाने या निगरानी में भागीदारी पर रोक लगाने का कोई प्रावधान नहीं है। संसद के अपने नियम इस कमी को पूरा करने का प्रयास करते हैं, लेकिन वे शक्तिहीन बने हुए हैं।"

 

 

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