Pakistan DigitalControl : पाकिस्तान में डिजिटल बैन चिंता का विषय, यूरोप की खामोशी ठीक नहीं : रिपोर्ट

डिजिटल बैन पर पाकिस्तान की कार्रवाई और यूरोप की खामोशी पर रिपोर्ट के तीखे सवाल
पाकिस्तान में डिजिटल बैन चिंता का विषय, यूरोप की खामोशी ठीक नहीं : रिपोर्ट

इस्लामाबाद: पाकिस्तान में डिजिटल बैन ने आवाम की आवाज को दबाने का काम किया है। अब उसका यही रवैया विश्व बिरादरी और संस्थाओं को असमंजस की स्थिति में डाल रहा है। समझ नहीं पा रहे कि खामोश रहें या उसके खिलाफ खुलकर बोलें। इस उहापोह की स्थिति और खामोशी को लेकर शुक्रवार को एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।

यूके के मीडिया आउटलेट मिल्ली क्रोनिकल ने पाकिस्तान में डिजिटल नियंत्रण का मुद्दा उठाया है। विस्तृत रिपोर्ट छापी है जिसमें सवाल उसकी नीयत और यूरोपीय देशों के सैद्धांतिक अप्रोच को लेकर किया गया है।

विस्तृत रिपोर्ट में कहा है कि जब सरकारें इंटरनेट बंद कर दें, उनके आलोचना करने वाले चैनल्स को बैन कर दें, तो ये मान लेना चाहिए कि नुकसान तात्कालिक और संरचनात्मक दोनों है। इससे जीवन खतरे में पड़ जाता है और अपने हिसाब से नैरेटिव सेट किया जाने लगता है।

फिर आगे लिखा है कि पाकिस्तान ने ऐसा ही किया। वहां जिस तरह डिजिटल कंट्रोल किया, आबादी के एक बड़े हिस्से को समय-समय पर मोबाइल ब्रॉडबैंड से काट दिया और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ब्लॉक कर स्वतंत्र चैनलों को ऑफलाइन ही नहीं किया बल्कि पत्रकारों को धमकाया या अगवा किया गया, यह सब कुछ संरचनात्मक और तात्कालिक नुकसान की ओर ध्यान दिलाते हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की थी कि यूरोपीय देश सैद्धांतिक कदम उठाएं और बेहतर कूटनीति के साथ आगे बढ़ें।

पाकिस्तानी डिजिटल कंट्रोल के बीच भी यूरोपीय देशों की खामोशी को कठघरे में खड़ा करते हुए आगे कहा है कि "इसके बजाय, हमने जो देखा है वह एक सोची-समझी खामोशी है जो इस असहज सच्चाई को उजागर करती है कि कैसे मानवाधिकारों की बात करने वाले भू राजनीतिक सुविधा को ध्यान में रख चुप्पी साधे बैठे रहते हैं। ये पैटर्न अब जाना पहचाना सा लग रहा है। पाकिस्तानी सरकार ने बार-बार किए जाने वाले इंटरनेट प्रतिबंध को राजनीतिक प्रबंधन का एक साधन बना दिया है: विरोध प्रदर्शनों के दौरान मोबाइल इंटरनेट सेवा हमेशा बंद रहती है, एक्स जैसे प्लेटफॉर्म ब्लॉक कर दिए जाते हैं, इसके साथ ही निगरानी करने वाली शक्तियों के अधिकार बढ़ाने के लिए कानून का सहारा लिया जाता है।"

रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि यूरोप की नीति मोल-भाव वाली नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे पाकिस्तान के डिजिटल दमन को आंतरिक समस्या के रूप में नहीं देखना चाहिए। इसे ह्यूमन राइट इमरजेंसी के रूप में ट्रीट किया जाना जरूरी है।

इसमें कहा गया है कि यदि यूरोपीय विदेश नीति नारों से परे लोकतंत्र को तथा प्रेस विज्ञप्तियों से परे प्रेस स्वतंत्रता को महत्व देती है, तो उसे ऐसी प्रथाओं को "भू-राजनीतिक चिंताओं के लिए स्वीकार्य" तत्व के रूप में स्वीकार करना बंद कर देना चाहिए।

ये रिपोर्ट दावा करती है कि अगर यूरोप मूक बना रहा तो ये न सिर्फ पाकिस्तानियों के लिए निराशाजनक होगा बल्कि ये अन्य हुक्मरानों को भी डिजिटल बैन करने के लिए प्रेरित करेगा।"

--आईएएनएस

 

 

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