Pakistan Afghanistan Tensions: तालिबान में दरार और टीटीपी का उभार, दक्षिण एशिया पर मंडराता खतरा

आईएसकेपी और टीटीपी-अल-कायदा गठबंधन से बढ़ा दक्षिण एशिया का खतरा
तालिबान में दरार और टीटीपी का उभार, दक्षिण एशिया पर मंडराता खतरा

नई दिल्ली:  पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं। इसकी वजहों में डूरंड रेखा को लेकर विवाद और तालिबान द्वारा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को कथित संरक्षण देना शामिल है।

इसी को काउंटर करने के लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) को मजबूत करने का खतरनाक खेल खेला, जो अफगानिस्तान में अपने पैर जमाने की कोशिश में है।

आईएसकेपी के गठन से पहले, इस्लामिक स्टेट के संस्थापक अबु बक्र अल-बगदादी ने तालिबान को साथ आने का प्रस्ताव दिया था। बगदादी चाहता था कि तालिबान और आईएस मिलकर इस्लामिक खिलाफत कायम करें। हालांकि, तालिबान ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उसका मानना था कि वह आईएस का जूनियर पार्टनर नहीं बन सकता और अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर खुद शासन करना चाहता है। तभी से दोनों गुटों में टकराव बढ़ा और अक्सर उनके लड़ाके आपस में भिड़ते रहे।

पाकिस्तान में टीटीपी के बढ़ते हमलों और सेना को हो रहे भारी नुकसान के बाद आईएसआई ने नया खेल रचा। तालिबान से रिश्ते खराब होने पर आईएसआई ने आईएसकेपी को सहारा दिया। आईएसकेपी को यह प्रस्ताव इसलिए भी स्वीकार्य लगा क्योंकि पाकिस्तान की मदद से उसे अफगानिस्तान में जगह बनाने का मौका मिल रहा था। वहीं आईएसआई को उम्मीद थी कि आईएसकेपी, टीटीपी और तालिबान दोनों को उलझाए रखेगा ताकि पाकिस्तानी सेना पर दबाव कम हो।

इसी बीच टीटीपी भी नए गठबंधनों की तलाश में है। खुफिया अधिकारियों के अनुसार, टीटीपी ने अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट से संपर्क साधा है। चूंकि अल-कायदा तालिबान का समर्थक है और उसके हितों को अफगानिस्तान में नुकसान नहीं पहुंचाता, ऐसे में यह तालमेल दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है।

2014 में गठित अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट अब तक क्षेत्र में खास प्रभाव नहीं डाल पाया है, लेकिन अगर टीटीपी और अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट एकजुट होते हैं, तो यह न सिर्फ पाकिस्तान के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा होगा। अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट के निशाने पर भारत और बांग्लादेश ज्यादा हैं।

बांग्लादेश में स्थिति और नाजुक हो सकती है। कई आतंकी संगठन भारत में मॉड्यूल खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं और इनमें अधिकांश अल-कायदा समर्थित हैं। हालांकि, आईएस का भी वहां कुछ समर्थन है, लेकिन अल-कायदा का आधार कहीं बड़ा है।

शेख हसीना की सत्ता से विदाई के बाद अल-कायदा ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और अपनी मीडिया शाखा 'अल-सहाब' पर 12 पन्नों का बयान जारी कर बदलाव के आंदोलन का समर्थन किया। अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट के अमीर उसामा महमूद ने लिखा, “यह कोई साधारण घटना नहीं है कि आज बांग्लादेश के मुसलमान उस गुट के खिलाफ नफरत और गुस्से के तूफान के रूप में उठ खड़े हुए हैं, जो उन्हें बहुदेववादी हिंदुओं का गुलाम बना रहा था और जिनके हाथों वे अपराध और दमन झेल रहे थे।”

महमूद की इस टिप्पणी से साफ है कि अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट का मुख्य निशाना भारत है, क्योंकि यह हिंदू बहुल देश है। अगर टीटीपी और अल-कायदा इन द सबकॉन्टिनेंट का गठबंधन होता है, तो यह पूरे दक्षिण एशिया की सुरक्षा के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है।

 

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