इस्लामाबाद, 22 अगस्त (आईएएनएस)। एक प्रमुख अल्पसंख्यक अधिकार समूह ने पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और उत्पीड़न पर गंभीर चिंता जताई है। समूह ने चेतावनी दी है कि देश में व्याप्त धार्मिक असहिष्णुता के कारण ईसाई, हिंदू, अहमदिया, सिख और अन्य लोगों को उपेक्षा, टारगेट अटैक और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है।
वॉशिंगटन स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ऑर्गनाइज्ड हेट (सीएसओएच) की एक ताजा रिपोर्ट का हवाला देते हुए, वॉयस ऑफ पाकिस्तान माइनॉरिटी (वीओपीएम) ने कहा कि पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति "बेहद खराब" होती जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी के बावजूद, पाकिस्तान में अल्पसंख्यक लगातार खतरे में रहते हैं और न्याय की उम्मीद कम ही है।
वीओपीएम ने जोर देकर कहा कि इस उत्पीड़न का मूल कारण पाकिस्तान का विवादास्पद ईशनिंदा कानून है, जिसका बड़े स्तर पर धमकाने, व्यक्तिगत विवादों को निपटाने या धन उगाहने के लिए दुरुपयोग किया गया है। इसमें आगे कहा गया है कि आरोप, चाहे वे सच्चे हों या मनगढ़ंत, यह अक्सर देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भीड़ को भड़काने के लिए पर्याप्त होते हैं।
मानवाधिकार संस्था द्वारा जारी एक बयान में कहा गया, "पाकिस्तान के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय, हिंदुओं को हिंसा और जबरन धर्मांतरण का सामना करना पड़ रहा है। 2019 में, सिंध में हिंदू शिक्षक नोतन लाल पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर जेल भेजा गया। हिंदुओं की दुकानों को लूट लिया गया, एक स्कूल में तोड़फोड़ की गई और एक मंदिर पर हमला किया गया। हालांकि नोतन लाल को 2024 में बरी कर दिया गया, लेकिन उनका मामला इस बात की याद दिलाता है कि आरोप कितनी जल्दी सांप्रदायिक हिंसा भड़का सकते हैं। 2020 में, करक स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर को विस्तार देने की योजना विरोधियों को इतनी नापसंद आई कि एकत्रित भीड़ ने उसे आग ही लगा दी, वो भी तब जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षा के आदेश दिए थे।"
वीओपीएम के अनुसार, अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं और लड़कियों को अक्सर अपहरण और जबरन धर्मांतरण के रूप में उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। सीएसओएच की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू और ईसाई लड़कियां विशेष रूप से जोखिम में हैं।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के बारे में मानवाधिकार संस्था ने बताया कि दिसंबर 2024 में, 15 वर्षीय हिंदू लड़की काजोल को सिंध प्रांत स्थित उसके घर से अगवा कर लिया गया, फिर उसे प्रताड़ित किया गया, उसके साथ बलात्कार किया गया, धर्मांतरण कराया गया और जबरन शादी के लिए मजबूर किया गया। उसका नाम बदलकर 'जावेरिया' रख दिया गया और शादी को वैध दिखाने के लिए उसकी उम्र भी गलत बताई गई। वीओपीएम ने कहा कि उसके परिवार की अपील के बावजूद वह अपहरणकर्ताओं के चंगुल में है।
इसके अलावा, मानवाधिकार संस्था ने बताया कि मार्च 2024 में, 10 वर्षीय ईसाई लड़की लाइबा को पंजाब प्रांत स्थित उसके घर से अगवा कर लिया गया, जबरन इस्लाम धर्म कबूल करवाया गया, और 35 वर्षीय अपहरणकर्ता से उसकी शादी करा दी गई। साथ ही दस्तावेजों में हेराफेरी करके उसे 17 साल का दिखाया गया। वहीं पीड़िता को उसके माता-पिता को लौटाने के बजाय, एक पाकिस्तानी अदालत ने एक सरकारी आश्रय गृह में रखने का आदेश दिया।
इसी तरह, अल्पसंख्यक पुरुषों के साथ होने वाली हिंसा पर भी चिंता जताते हुए, वीओपीएम ने कहा कि मार्च 2025 में, पेशावर में हिंदू सफाई कर्मचारी नदीम नाथ की इस्लाम धर्म अपनाने से इनकार करने पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
वीओपीएम ने कहा, "पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न केवल एक राजनीतिक और कानूनी मुद्दा नहीं है। यह एक गहरी मानवीय त्रासदी है। यह उन परिवारों के बारे में है जो रातोंरात अपने घर खो देते हैं, छोटी बच्चियों का बचपन छीन लिया जाता है, और पूरा समुदाय डर के साये में जीने को मजबूर हो जाता है।"
--आईएएनएस
एससीएच/केआर