भारतीय कंपनी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश
काठमांडू: चीन की विस्तारवादी नीति से हर देश भलि-भांति परिचित है। पड़ोसी देशों की जमीन को कब्जाने की उसकी नीति हमेशा से दुनिया के सामने आती रही है। बात चाहे बांग्लादेश की तीस्ता रिवर में जासूसी जहाज तैनात करने की हो या नेपाल के अहम सड़क परियोजनाएं हो। लेकिन नेपाल की सुप्रीम कोर्ट से चीन को करारा झटका लगा है। इस भारत की कूटनीतिक जीत के रूप में भी देखा जा रहा है। दरअसल नेपाली सुप्रीम कोर्ट ने चीन के सड़क परियोजना पर रोक लगा दी है। इस प्रोजेक्ट को नेपाल आर्मी की तरफ से चाइना फर्स्ट हाइवे इंजीनियर को दिया गया था।
नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने नेपाली सेना द्वारा चाइना फर्स्ट हाईवे इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड को 1500 करोड़ से अधिक के सड़क निर्माण के ठेके पर रोक लगाकर चर्चा के लिए सभी पक्षों को बुलाया है। बोली लगाने वालों में से एक भारत की एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की याचिका पर अदालत का आदेश आया। काठमांडू तराई-मधेश एक्सप्रेसवे परियोजना के लिए बोली की पारदर्शिता को लेकर चिंताएँ थीं इस नेपाल सेना द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। परियोजना को संवेदनशील माना जाता है क्योंकि एक हिस्सा भारतीय सीमा के करीब स्थित होगा।
चाइना फर्स्ट हाईवे इंजीनियरिंग उन पांच कंपनियों में से नहीं थी जो सितंबर में परियोजना के लिए बोली लगाने के लिए योग्य थी और इस सबसे कम बोली लगाने वाले घोषित किए जाने से एक दिन पहले 6 नवंबर को शामिल किया गया था। लोगों ने बताया कि इस दौरान परियोजना को संभालने वाले नेपाल सेना के अधिकारी को भी बदल दिया गया।