बांग्लादेश तेजी से इस्लामी कट्टरपंथ की ओर बढ़ रहा: रिपोर्ट

ढाका, 21 नवंबर (आईएएनएस)। जुलाई 2024 में हुए प्रदर्शनों के बाद बांग्लादेश तेजी से इस्लामी कट्टरपंथ की ओर बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश में महिलाओं की भूमिकाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कट्टरपंथी संगठनों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली महिलाओं को अब जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठनों का विरोध झेलना पड़ रहा है। जमात-ए-इस्लामी के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि महिलाओं को घर और परिवार पर अधिक ध्यान देना चाहिए और उन्हें कार्यस्थलों पर सीमित किया जाना चाहिए। इसके अलावा, महिला खिलाड़ियों के साथ हमले और उत्पीड़न की घटनाएं आम होती जा रही हैं।

ढाका की प्रसिद्ध सांस्कृतिक संस्था छायानट ने सुरक्षा कारणों से अपने सार्वजनिक कार्यक्रम लगभग बंद कर दिए हैं। पुलिस भी टैगोर गीत-संगीत कार्यक्रमों की अनुमति देने में झिझक रही है। कट्टरपंथियों द्वारा महिलाओं के पहनावे को लेकर खुलेआम उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं। एक मामले में ढाका विश्वविद्यालय में एक कर्मचारी ने महिला को ‘गैर-इस्लामी’ पहनावे को लेकर परेशान किया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया, लेकिन भीड़ ने हमला कर उसे छुड़ा लिया और उसे ‘नायक’ की तरह सम्मान दिया। बाद में वह धार्मिक नेताओं के साथ मंच पर भी नजर आया।

रिपोर्ट में बताया गया कि हाल ही में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों में संगीत शिक्षकों की नियुक्ति से जुड़े प्रस्ताव को रद्द कर दिया। आजादी के बाद से संगीत बांग्लादेश के प्राथमिक पाठ्यक्रम का हिस्सा रहा है, लेकिन इस्लामी समूह इसे ‘गैर-इस्लामी’ बताते हुए हटाने की मांग कर रहे हैं और इसके बदले इस्लामी अध्ययन के शिक्षकों की नियुक्ति पर जोर दे रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, देश में 15–20 हजार मदरसे मौजूद हैं, जहां कट्टरपंथी वहाबी विचारधारा सिखाई जा रही है। यह एक ऐसे बदलते बांग्लादेश का संकेत है जो तेजी से इस्लामी कट्टरपंथ का गढ़ बनता जा रहा है।

जुलाई विद्रोह के तुरंत बाद पूरे देश में इस्लामी उन्मादियों ने स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं की मूर्तियां तोड़ दीं। इसके बाद सूफी मज़ारों और दरगाहों पर हमलों की श्रृंखला शुरू हुई और अब तक लगभग 80 प्रतिशत दरगाहें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। कई सूफी गायकों पर हमले हुए और कई मामलों में उन्हें जबरन दाढ़ी कटवाने पर मजबूर किया गया।

रिपोर्ट में दावा किया गया कि पिछले साल हुए प्रदर्शन अब केवल छात्र आंदोलन नहीं माने जा रहे हैं। जमात-ए-इस्लामी ने खुलकर इसकी जिम्मेदारी ली है और कहा है कि पूरा आंदोलन उनकी योजना का हिस्सा था।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि अब कट्टरपंथी संगठनों को लगता है कि वास्तविक सत्ता उनके हाथों में है और वे जल्द ही शासन पर पूर्ण नियंत्रण की दिशा में बढ़ सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि स्थिति पाकिस्तान से भी अधिक गंभीर हो सकती है क्योंकि पाकिस्तान में सेना सत्ता के प्रमुख केंद्र में है और न्यायपालिका अभी भी स्वतंत्र है, जबकि बांग्लादेश की सेना कमजोर है और संयुक्त राष्ट्र के मिशनों पर निर्भर है।

रिपोर्ट ने निष्कर्ष में कहा कि यदि स्थिति इसी दिशा में बढ़ती रही तो बांग्लादेश इस्लामी कट्टरपंथ का नया वैश्विक केंद्र बन सकता है।

--आईएएनएस

डीएससी

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