अत्यधिक गर्मी से ट्रॉपिकल क्षेत्रों में पाए जाने वाले पक्षियों की संख्या में भारी गिरावट: स्टडी

सिडनी, 12 अगस्त (आईएएनएस)। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली अत्यधिक गर्मी की वजह से 1950 से अब तक गर्म क्षेत्रों में रहने वाले पक्षियों की आबादी में 25 से 38 तक गिरावट आई है।

ऑस्ट्रेलियाई और यूरोपीय वैज्ञानिकों के एक नए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। यह शोध ‘नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है और इसे यूनिवर्सिटी ऑफ क्वींसलैंड की वेबसाइट पर मंगलवार को साझा किया गया।

शोधकर्ताओं ने 1950 से 2020 तक 3,000 से अधिक पक्षी आबादियों का विश्लेषण किया, जिसमें 90,000 वैज्ञानिक अवलोकन शामिल थे। उन्होंने मौसम के आंकड़ों का उपयोग कर जलवायु के प्रभाव को मानवीय गतिविधियों, जैसे जंगल कटाई से अलग पैमाने पर देखा।

अध्ययन से पता चला कि औसत तापमान और बारिश में बदलाव का कुछ असर तो है, लेकिन ट्रॉपिकल क्षेत्रों में पक्षियों के लिए सबसे बड़ा खतरा अत्यधिक गर्मी है।

सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित एक शोध ने अन्य वैज्ञानिकों के निष्कर्षों की पुष्टि की है। यह शोध बताता है कि पिछले 70 सालों में, खासकर भूमध्य रेखा (पृथ्वी के बीच का हिस्सा) के आसपास के क्षेत्रों में गर्मी बढ़ी है। इसका मतलब है कि पहले की तुलना में अब इन क्षेत्रों में बहुत ज्यादा गर्मी वाले दिन अधिक बार हो रहे हैं। यह जलवायु परिवर्तन का एक गंभीर संकेत है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाले पक्षियों और अन्य जीवों के लिए बड़ा खतरा बन रहा है।

वैज्ञानिकों ने पाया कि भूमध्य रेखा के पास पिछले 70 वर्षों में गर्मी तेजी से बढ़ी है। पक्षी अब पहले की तुलना में दस गुना अधिक भीषण गर्मी का सामना कर रहे हैं। पहले जहां उन्हें साल में औसतन तीन दिन अत्यधिक गर्मी झेलनी पड़ती थी, अब यह संख्या 30 दिन हो गई है।

अत्यधिक गर्मी से पक्षियों को गंभीर नुकसान होता है, जैसे हाइपरथर्मिया (अधिक गर्मी से शरीर का तापमान अनियंत्रित होना) और निर्जलीकरण। इससे उनके अंग खराब हो सकते हैं, प्रजनन क्षमता कम हो सकती है और वे भोजन की तलाश में कम समय बिता पाते हैं। गर्मी के कारण उनके अंडों और चूजों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता और कई बार तो पक्षी अपने अंडे को घोंसले में छोड़ देते हैं।

शोध में यह भी सामने आया कि मानवीय गतिविधियों से अछूते दूरस्थ उष्णकटिबंधीय जंगलों में भी पक्षियों की संख्या कम हो रही है। यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव जंगल कटाई जैसे मानवीय दबावों से भी बड़ा हो सकता है। चूंकि कुल पक्षियों की लगभग आधी प्रजातियां दुनिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं, यह वैश्विक जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने भी चेतावनी दी है कि अत्यधिक गर्मी, जंगल की आग और खराब वायु गुणवत्ता लाखों लोगों और वन्यजीवों को प्रभावित कर रही है। शोधकर्ताओं ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और आवास संरक्षण की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है ताकि पक्षियों और जैव विविधता को बचाया जा सके।

संगठन ने 7 अगस्त को एक बुलेटिन जारी किया, जिसमें कहा गया कि आंकड़े वैश्विक स्तर पर बढ़ती गर्मी का संकेत देते हैं।

यूरोपीय यूनियन फंडेड कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 2025 की जुलाई काफी गर्म रही। जुलाई 2023 और जुलाई 2024 के बाद ये तीसरा सबसे गर्म जुलाई का महीना रहा।

समुद्र की सतह का औसत तापमान भी रिकॉर्ड पर तीसरा सबसे अधिक रहा। 47 साल के उपग्रह रिकॉर्ड में आर्कटिक समुद्री बर्फ का विस्तार जुलाई में संयुक्त रूप से दूसरा सबसे कम रहा, जो लगभग 2012 और 2021 के बराबर है।

जुलाई में, यूरोप में लू की स्थिति ने विशेष रूप से स्वीडन और फिनलैंड को प्रभावित किया, जहां तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर असामान्य रूप से लंबे समय तक रहा। दक्षिण-पूर्वी यूरोप ने भी लू और जंगल की आग की गतिविधियों का सामना किया।

--आईएएनएस

एमटी/केआर

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