शफी इनामदार : अभिनय को नई गहराई देने वाली शख्सियत, प्रतिभा और मेहनत से दिलों में बनाई जगह

मुंबई, 22 अक्टूबर (आईएएनएस)। शफी इनामदार का नाम भारतीय थिएटर और सिनेमा की दुनिया में एक ऐसे कलाकार के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपनी प्रतिभा और मेहनत से हर किसी के दिल में खास जगह बनाई।

वह न केवल फिल्मों और टीवी में अपनी अलग पहचान बनाने वाले अभिनेता थे, बल्कि थिएटर के क्षेत्र में भी उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण था। शफी इनामदार ने अपनी कला की शुरुआत थिएटर से की थी और वहीं से उन्होंने अपनी अभिनय यात्रा की नींव रखी। उनकी खूबी यह थी कि वह हर भूमिका में खुद को पूरी तरह से ढाल लेते थे, चाहे वह फिल्मी किरदार हो या रंगमंच का। खास बात यह है कि शफी ने गुजराती और मराठी थिएटर से अपने अभिनय और निर्देशन की कला को काफी मजबूत किया, जो उनके करियर में भी साफ झलकता था।

शफी इनामदार का जन्म 23 अक्टूबर 1945 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के दापोली इलाके के एक छोटे से गांव में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा यहीं पूरी की और बाद में मुंबई के केसी कॉलेज से विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। बचपन से ही शफी को अभिनय का काफी शौक था। स्कूल के दिनों में वे नाटकों में भाग लेते थे और कभी-कभी तो नाटक का निर्देशन भी करते थे। वे सिर्फ अभिनय तक सीमित नहीं रहे, बल्कि नाटकों के लेखन और मंचन में भी रुचि रखते थे। यह जुनून आगे चलकर उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा हिस्सा बन गया।

शफी इनामदार ने थिएटर की शुरुआत गुजराती और मराठी भाषाओं के मंच से की। उन्होंने लगभग 30 से ज्यादा वन-एक्ट प्ले लिखे, जिनमें उन्होंने खुद अभिनय के साथ-साथ निर्देशन भी किया। इन छोटे-छोटे नाटकों ने उनकी कला को निखारा और उन्हें कई तरह की भूमिकाओं को निभाने का अनुभव दिया। उनके निर्देशन में तैयार नाटक कई भाषाओं में होते थे, जैसे हिंदी, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी। वह बहुभाषी प्रतिभा वाले कलाकार थे। शफी के थिएटर की खास बात यह थी कि वह हर किरदार को गहराई से समझते और दर्शकों के सामने उसे जीवंत कर देते थे। उनके नाटकों में सामाजिक और मानवीय मुद्दों को बहुत प्रभावशाली ढंग से पेश किया जाता था।

शफी इनामदार ने अपने थिएटर करियर में भारतीय राष्ट्रीय थिएटर और इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) जैसे प्रतिष्ठित मंचों के साथ भी काम किया। इप्टा से जुड़ने के बाद उनका दृष्टिकोण और भी व्यापक हुआ, क्योंकि यहां सामाजिक मुद्दों और जागरूकता के लिए थिएटर प्रस्तुत किए जाते थे। इसी दौरान उन्होंने इस्मत चुगताई के नाटक 'नीला कमरा' का निर्देशन किया, जो उनकी पहली व्यावसायिक हिंदी नाट्य प्रस्तुति थी। 1982 में उन्होंने अपनी खुद की थिएटर कंपनी 'हम प्रोडक्शन' की स्थापना की, जिसके तहत उन्होंने कई यादगार नाटकों का मंचन किया।

फिल्मी दुनिया में शफी इनामदार ने 1982 में शशि कपूर की फिल्म 'विजेता' से कदम रखा। इस फिल्म के निर्देशक गोविंद निहलानी थे, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को तुरंत पहचान लिया। इसके बाद 1983 की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'अर्धसत्य' में इंस्पेक्टर हैदर अली के किरदार ने उन्हें खास पहचान दिलाई। वे केवल फिल्मों में ही नहीं, बल्कि टीवी पर भी बहुत लोकप्रिय हुए। 1984 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ टीवी शो 'ये जो है जिंदगी' शफी के करियर की बड़ी सफलता थी, जिसने उन्हें देशभर में एक जाना-माना नाम बना दिया। इस शो में उनका किरदार इतना प्यारा और स्वाभाविक था कि लोग उन्हें घर के सदस्य की तरह मानने लगे।

फिल्मों में शफी इनामदार ने कई अलग-अलग तरह के किरदार निभाए, जैसे 'नजराना', 'अनोखा रिश्ता', 'अमृत', 'सदा सुहागन' आदि। उनकी खासियत यह थी कि वे चाहे हीरो के दोस्त हों, पुलिस अफसर हों या खलनायक, हर भूमिका में वे अपने अभिनय से पूरी कहानी को मजबूत बनाते थे। उनकी डायलॉग डिलीवरी और चेहरे के एक्सप्रेशन दर्शकों को बांधे रखते थे। फिल्मों के साथ-साथ शफी ने कई टीवी धारावाहिकों में भी काम किया, जिनमें 'गालिब', 'बादशाह जहांगीर', और 'आधा सच आधा झूठ' प्रमुख हैं।

शफी इनामदार ने 1995 में फिल्मों के निर्देशन की भी दुनिया में कदम रखा। उन्होंने 'हम दोनों' नामक फिल्म का निर्देशन किया, जिसमें ऋषि कपूर, नाना पाटेकर और पूजा भट्ट मुख्य भूमिका में थे। यह फिल्म दर्शकों को पसंद आई और शफी को निर्देशक के रूप में भी सराहना मिली।

दुर्भाग्यवश, शफी इनामदार का जीवन लंबा नहीं रहा। 13 मार्च 1996 को भारत और श्रीलंका के बीच क्रिकेट वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल मैच को देखने के दौरान उन्हें हार्ट अटैक आया। महज 50 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

--आईएएनएस

पीके/एएस

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