नई दिल्ली: फिल्म जगत में 'सलील दा' के नाम से प्रसिद्ध सलील चौधरी के पास न तो कोई साधन था और न ही संगीत की पारंपरिक शिक्षा। इसके बावजूद उन्होंने पूरी दुनिया को अपनी धुनों पर नचाया। उन्होंने ऑर्केस्ट्रा में काम करने वाले अपने भाई के साथ रहकर कई तरह के वाद्य यंत्र बजाना सीखा।
आइए सलील चौधरी की पुण्यतिथि पर उनके जीवन से जुड़ी अहम बातों के बारे में जानते हैं।
संगीतकार सलील चौधरी का जन्म 19 नवंबर 1923 को पश्चिम बंगाल में दक्षिण 24 परगना जिले के गाजीपुर गांव में हुआ था। 5 सितंबर 1995 को 69 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था। सलील दा ने हिंदी फिल्मों के साथ-साथ बंगाली और मलयालम फिल्मों के लिए संगीत दिया था। उन्होंने 'मधुमती', 'दो बीघा जमीन', 'आनंद', 'मेरे अपने' जैसी फिल्मों में संगीत दिया, जो काफी पसंद किया गया।
सलील दा ने अपने गीतों के जरिए आजादी की अलख जगाई, जिससे वे मुक्ति संघर्ष के नायक बन गए। देशवासी उनके गीतों से इतने प्रभावित हुए कि उन पर ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। 1950 के दौरान में वे बांग्ला भाषा में गीतकार और संगीतकार के रूप में अपनी अलग पहचान बना चुके थे। उनका अगला सफर मुंबई था। जब वह पहुंचे तो डायरेक्टर बिमल रॉय उस वक्त 'दो बीघा जमीन' के लिए संगीतकार ढूंढ रहे थे।
सलील दा के संगीत से प्रभावित होकर बिमल रॉय ने 'दो बीघा जमीन' फिल्म की जिम्मेदारी सौंप दी। 1953 में रिलीज हुई इस फिल्म के गानों ने सलील चौधरी को सलील दा बना दिया। इस फिल्म की सफलता के बाद सलील दा, बिमल रॉय के चहेरे संगीतकार बन गए। इसके बाद दोनों ने एक के बाद एक कई हिट फिल्में दीं।
बाद में सलील दा के साथ गीतकार शैलेंद्र का नाम जुड़ गया। सलील-शैलेंद्र की जोड़ी ने दर्शकों के लिए कई बेहतरीन गीत तैयार किए। लोगों ने सलील दा और गुलजार की भी जोड़ी को खूब पसंद किया। 1960 में फिल्म 'काबुलीवाला' में दोनों की जोड़ी ने लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ दी।
सलिल दा को फिल्म मधुमति के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार का सम्मान मिला। उन्हें साल 1988 में संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार मिला। 70 के दशक आते-आते उनका मायानगरी से मोहभंग होने लगा और फिर वे कोलकाता लौट आए। उन्होंने 75 से अधिक हिंदी फिल्मों में अपना संगीत दिया।
सलिल दा ने 'कोई होता अपना जिसको', 'जिंदगी... कैसी है पहेली हाय', 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए', 'दिल तड़प तड़प के कह रहा है', 'सुहाना सफर और ये मौसम हंसी', 'मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने', 'जानेमन जानेमन, तेरे दो नयन', 'रजनीगंधा फूल तुम्हारे' जैसे गानों की धुन दी। उन्होंने 5 सितंबर 1995 को दुनिया को अलविदा कह दिया।