मुंबई: 1947 का वह दिन, जब देश के बंटवारे के दौरान नफरत और हिंसा की वजह से अनगिनत लोग बेघर हो गए और उन्हीं की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाया जाता है। इस विभाजन में कइयों के घर छूटे, अपने छूटे, दिल टूटा और आंखों में बस गया वह भयानक मंजर जो आज भी दिल दहला देता है। उस दौर की दुश्वारियों को दिखाती और कई संवेदनशील मुद्दों को छूती फिल्में बॉलीवुड ने हमें दी हैं।
चंद्रप्रकाश द्विवेदी की ‘पिंजर’ अमृता प्रीतम के उपन्यास पर आधारित है, जो विभाजन के दौरान महिलाओं की पीड़ा को दिखाती है। साल 2003 में आई फिल्म में उर्मिला मातोंडकर के निभाए 'पूरो' के किरदार को दर्शकों से काफी प्यार मिला। पूरो एक हिंदू लड़की रहती है, जिसका एक मुस्लिम युवक (मनोज बाजपेयी) अपहरण कर लेता है। यह फिल्म सामाजिक बंधनों, नफरत और मानवता के बीच की जटिलताओं को उजागर करती है। ‘पिंजर’ विभाजन की त्रासदी को बखूबी प्रस्तुत करती है, जो उसके दर्द के बारे में दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती है। फिल्म के हर एक सीन में भावनाएं भर-भरकर डाली गई हैं।
साल 2003 में आई सबीहा सुमर की फिल्म ‘खामोश पानी’ पाकिस्तान में बसे एक गांव की कहानी है, जहां विभाजन की यादें एक महिला और उसके बेटे के जीवन की कहानी को कहती हैं। किरण खेर की दमदार एक्टिंग इस फिल्म को यादगार बनाती है। इंडो-पाकिस्तानी फिल्म एक पंजाबी गांव में रहने वाली विधवा मां और उसके बेटे के बारे में है। एक पाकिस्तानी गांव में फिल्माई गई यह फिल्म भारत में भी रिलीज हुई थी।
अनिल शर्मा के निर्देशन में बनी ‘गदर’ विभाजन के दौरान की प्रेम और बलिदान की कहानी को पर्दे पर पेश करती है। साल 2001 में आई इस फिल्म में सनी देओल और अमीषा पटेल लीड रोल में हैं। यह फिल्म एक सिख ट्रक ड्राइवर तारा सिंह और मुस्लिम लड़की सकीना की प्रेम कहानी को पर्दे पर उतारती है। विभाजन की हिंसा और नफरत के बीच तारा अपनी पत्नी और बेटे को बचाने के लिए पाकिस्तान जाता है। ‘गदर’ ने विभाजन के दर्द को संवेदनशीलता के साथ पेश किया है।
'1947: अर्थ' एक इंडो-कैनेडियन पीरियड रोमांस ड्रामा फिल्म है, जो 1999 में बनी है, जिसका निर्देशन दीपा मेहता ने किया है। यह बाप्सी सिधवा के उपन्यास 'क्रैकिंग इंडिया' पर आधारित है, जो 1947 के भारत विभाजन के समय की कहानी है। कहानी लाहौर में 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के समय भारत के विभाजन से ठीक पहले और उसके दौरान की है। पोलियो से ग्रस्त 'लेनी', एक धनी पारसी परिवार की लड़की रहती है, जो अपनी कहानी सुनाती है। उसके माता-पिता, बंटी और रुस्तम, और आया शांता उसकी देखभाल करते हैं। शांता के प्रेमी, दिल और हसन, और उनके अलग-अलग धर्मों के दोस्त पार्क में समय बिताते हैं। विभाजन के दंश का असर उनकी जिंदगी में भी देखने को मिलता है।
खुशवंत सिंह के उपन्यास पर आधारित पामेला रूक्स की फिल्म ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ साल 1998 में आई थी। यह एक पंजाबी गांव की कहानी बयां करती है, जहां सिख और मुस्लिम समुदाय शांति से रहते हैं। लेकिन, विभाजन की हिंसा गांव को भी अपनी चपेट में ले लेती है। ट्रेन दृश्य, जिसमें लाशों से भरी रेलगाड़ी गांव पहुंचती है, विभाजन की भयावहता को दिखाता है।