पूर्णिमा श्राद्ध: जानें क्या है महत्व, पूजा का समय और नियम

मुंबई, 6 सितंबर (आईएएनएस)। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष का पूर्णिमा श्राद्ध रविवार को है। यह श्राद्ध पितृ पक्ष से ठीक एक दिन पहले पड़ता है। इस दिन उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो।

दृक पंचांग के अनुसार, इस दिन सूर्य सिंह राशि में रहेगा और चंद्रमा कुंभ राशि में रहेगा। वहीं, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा।

पूर्णिमा श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। यह उन लोगों के लिए विशेष रूप से आयोजित किया जाता है जिनका देहांत पूर्णिमा तिथि को हुआ हो। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यह श्राद्ध पितृ पक्ष की शुरुआत से पहले एक महत्वपूर्ण धार्मिक कृत्य है।

विद्वानों के अनुसार, श्राद्ध के सभी अनुष्ठान अपराह्न काल (दोपहर 12 बजे के बाद से मध्य रात्रि रात 12 बजे के पहले) समाप्त होने से पहले पूरे कर लेने चाहिए। अनुष्ठान के अंत में तर्पण करना अनिवार्य है, जो पितरों को तृप्त करने का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

श्राद्ध कर्म में पितरों के नाम से दान, तर्पण, और ब्राह्मण भोज कराया जाता है और उन्हें दान-दक्षिणा दी जाती है। यह माना जाता है कि ब्राह्मणों को भोजन कराने से वह सीधे पूर्वजों तक पहुंचता है। इसके बाद शुभ मुहूर्त में पवित्र नदी या घर पर तर्पण किया जाता है। इस दिन सात्विक भोजन और दान का विशेष महत्व है।

श्राद्ध का एक महत्वपूर्ण भाग कौए (यम का दूत), गाय और कुत्ते को भी भोजन कराना है, क्योंकि इन्हें पूर्वजों का प्रतिनिधि माना जाता है।

यह धार्मिक अनुष्ठान न केवल पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का अवसर है, बल्कि यह परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

--आईएएनएस

एनएस/एएस

Related posts

Loading...

More from author

Loading...