नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ अपनी लोक संस्कृति के लिए जाना जाता है। संगीत संस्कृति का एक अहम अंग होता है। छत्तीसगढ़ के लोक संगीत में मदन सिंह चौहान का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्होंने राज्य की परंपरा और संस्कृति को अपनी मधुर आवाज में देश-विदेश में पहुंचाया है। उन्हें प्यार से 'गुरुजी' भी कहा जाता है।
मदन सिंह चौहान का जन्म 15 अक्टूबर 1947 को रायपुर में हुआ था। संगीत की साधना बचपन में ही शुरू हो गई थी। चौहान को गरीबी की वजह से संगीत की साधना में बाधाएं भी आईं। बचपन में वह ढोलक बजाया करते थे, लेकिन ढोलक बजाने की शुरुआत टिन के पीपे को बजाने से शुरू हुई। गरीबी की वजह से ढोलक खरीदने के पैसे उनके पास नहीं थे। पंडित कन्हैयालाल भट्ट के मार्गदर्शन में चौहान ने तबला वादन में महारथ हासिल की। शुरुआत में ढोलक, फिर तबला और फिर गायन तीनों ही क्षेत्र में चौहान ने महारत हासिल की।
वह तबला वादन के साथ-साथ गजल और लोक संगीत गाते हैं। उनकी आवाज में वह जादू है जो सुनने वाले को लोक से जोड़ देता है। छत्तीसगढ़ के लोकगीतों जैसे पंडवानी या करमा से प्रेरित होकर वे आधुनिक सूफी को नया आयाम देते हैं। छत्तीसगढ़ी लोक शैली को शास्त्रीय संगीत के साथ जोड़ते हैं, जहां सूफी की रहस्यमयी धुनें लोक की सरलता से मिलती हैं। उनके गीतों में प्रेम, वियोग और आध्यात्मिकता का मिश्रण है, जो श्रोताओं को गहराई तक छूता है। वह भजन, गजल, सूफी, और लोक शैली हर संगीत को अपने सुर में सजाते हैं। कबीर की याद में गाया 'आज मोरे घर साहिब आए' जैसे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हैं।
चौहान मशहूर संगीत शिक्षक भी हैं। रायपुर में उनसे प्रशिक्षित सैकड़ों शिष्य देश-विदेश में छत्तीसगढ़ का नाम रोशन कर रहे हैं।
मदन सिंह चौहान की आजीवन संगीत साधना और छत्तीसगढ़ लोक संगीत में उनके असाधारण योगदान को देखते हुए 2020 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। उन्हें सम्मानित करते हुए तब के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा था, 'छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया।'
78 साल की उम्र में भी मदन सिंह चौहान संगीत के क्षेत्र में सक्रिय हैं और गायन, वादन के साथ ही युवा पीढ़ी को लोक संगीत से जोड़ने और प्रशिक्षित करने का काम निरंतर कर रहे हैं।