Hrishikesh Mukherjee : जब 'चुपके चुपके' सेट पर शतरंज खेलने लगे ऋषिकेश मुखर्जी, अमिताभ-धर्मेंद्र रह गए दंग

ऋषिकेश मुखर्जी: सादगी और संवेदनशीलता से रचा सिनेमा का जादू
जब 'चुपके चुपके' सेट पर शतरंज खेलने लगे ऋषिकेश मुखर्जी, अमिताभ-धर्मेंद्र रह गए दंग

मुंबई: जब बात भारतीय सिनेमा के उन फिल्मकारों की हो जिन्होंने कहानियों को न सिर्फ पर्दे पर उतारा, बल्कि उन्हें दिलों में बसाया, तो ऋषिकेश मुखर्जी का नाम सबसे ऊपर आता है। 30 सितंबर 1922 को कोलकाता में जन्मे इस सिनेमा के जादूगर ने सादगी और संवेदनशीलता को अपनी फिल्मों का आधार बनाया, जो न केवल मनोरंजन का जरिया बनीं, बल्कि जीवन की गहरी सच्चाइयों को भी उकेरती थीं। 

‘आनंद’, ‘गोलमाल’, ‘मिली’, ‘चुपके चुपके’ ये वो कालजयी फिल्में हैं, जिन्होंने साबित किया कि सिनेमा सिर्फ चमक-दमक का खेल नहीं, बल्कि हंसी, आंसुओं और मानवीय रिश्तों का एक नाजुक ताना-बाना भी हो सकता है।

ऋषिकेश का सिनेमा मध्यमवर्गीय भारतीय जीवन का आईना था। उनकी फिल्में उस आम आदमी की कहानी कहती थीं, जो रोजमर्रा की जिंदगी में छोटी-छोटी खुशियों और चुनौतियों से जूझता है। चाहे वो ‘आनंद’ में जीवन और मृत्यु के बीच की मार्मिक बात हो या ‘गोलमाल’ की हल्की-फुल्की हास्य भरी दुनिया, उनकी हर फिल्म में एक गहरा संदेश छिपा होता था, जो दर्शकों को हंसाता, रुलाता और सोचने पर मजबूर करता था।

ऋषिकेश मुखर्जी का सफर न्यू थिएटर्स और बॉम्बे टॉकीज में एक कुशल संपादक के रूप में शुरू हुआ, जहां उन्होंने सिनेमा की बारीकियां सीखीं। बाद में निर्देशन की दुनिया में कदम रखते हुए उन्होंने राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन जैसे सितारों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। ‘आनंद’ में राजेश खन्ना की जीवटता और ‘अभिमान’ में अमिताभ की गहरी संवेदनशीलता उनके निर्देशन की देन थी। उनकी खासियत थी कि वे बड़े सितारों के साथ-साथ छोटे किरदारों को भी उतनी ही अहमियत देते थे, जिससे उनकी फिल्में एक संपूर्ण अनुभव बन जाती थीं।

पद्म भूषण और दादासाहब फाल्के जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजे गए ऋषिकेश मुखर्जी का सिनेमा आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उनकी जीवनी 'द वर्ल्ड ऑफ ऋषिकेश मुखर्जी' में उनकी फिल्म का एक दिलचस्प किस्सा है, जो उनके निर्देशन की प्रतिभा का नमूना पेश करता है। यह किस्सा उनकी कल्ट कॉमेडी फिल्म 'चुपके चुपके' की शूटिंग का है। इस फिल्म में धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन, शर्मिला टैगोर और ओम प्रकाश जैसे कलाकार थे।

एक दिन शूटिंग के दौरान सेट पर अजीब सा माहौल था। निर्देशक की कुर्सी पर बैठे ऋषिकेश मुखर्जी सीन पर ध्यान देने के बजाय, पूरी तल्लीनता से शतरंज खेल रहे थे। वह अपने साथी के साथ अगली चाल की रणनीति बनाने में इतने व्यस्त थे कि उन्होंने अभिनेताओं को कोई खास निर्देश ही नहीं दिया।

यह देखकर उस दौर के दो सबसे बड़े सुपरस्टार, धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन, चिंतित हो गए। उन्हें लगा कि बिना किसी स्पष्ट मार्गदर्शन के कहीं सीन बिगड़ न जाए। दोनों अभिनेताओं ने हिम्मत करके ऋषिकेश मुखर्जी से पूछा कि वह बिना निर्देश दिए शूटिंग कैसे करें और क्या उन्हें सीन में कुछ बदलाव चाहिए?

ऋषिकेश मुखर्जी ने पहले अपनी चाल चली, फिर हंसते हुए तेज आवाज में जवाब दिया, "अगर तुम्हें कहानी समझ में आ गई होती, तो तुम अभिनेता नहीं, निर्देशक होते! अब जाओ और वह करो जो लिखा है।"

उनका यह जवाब सुनकर सेट पर मौजूद सभी लोग चौंक गए, लेकिन यह उनके काम करने के तरीके का सार था। उनका विश्वास था कि जब स्क्रिप्ट इतनी मजबूत हो कि अभिनेताओं को पता हो कि उन्हें क्या करना है, तो निर्देशक का काम सिर्फ उस प्रक्रिया पर विश्वास करना रह जाता है।

यह साबित करता है कि ऋषिकेश मुखर्जी अपनी हर फिल्म को एक शतरंज की बिसात की तरह देखते थे, जहां हर किरदार की चाल पहले से तय होती थी। उनकी यही स्पष्टता और सादगी उनकी फिल्मों की सबसे बड़ी ताकत थी।

 

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