नई दिल्ली, 22 नवंबर (आईएएनएस)। संगीत की दुनिया में अगर स्वर्ण अक्षरों में किसी का नाम लिखा जाएगा, तो वह स्वर कोकिला लता मंगेशकर का नाम होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि लता मंगेशकर भी एक महिला गायिका की आवाज की दीवानी थीं।
हम बात कर रहे हैं बंगाली और हिंदी सिनेमा में अपनी आवाज से दिलों पर जादू कर देने वाली प्लेबैक सिंगर गीता दत्त की। गीता दत्त की आवाज और लहजे की दीवानी लता मंगेशकर भी हुआ करती थीं।
23 नवंबर को गीता दत्त की जयंती है। उनका जन्म 23 नवंबर 1930 में पूर्वी बंगाल के फरीदपुर जिले में हुआ था। उन्हें बचपन से ही गाने का शौक था। गाने की विरासत गीता को अपने परिवार से ही मिली थी। उनकी मां कविताएं लिखती थीं और उनके पिता मुकुल रॉय संगीतकार थे। दोनों के गुण गीता के अंदर थे और उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि एक बार सुनने पर उनकी आवाज को भूल पाना मुमकिन था।
गीता दत्त ने पहली बार गायन कला का प्रदर्शन साल 1946 में आई फिल्म 'भक्त प्रह्लाद' में किया था। हालांकि गाने में उन्होंने सिर्फ दो लाइनें ही गाई थीं, लेकिन फिर भी उनकी आवाज को खूब प्रशंसा मिली।
इसके बाद उन्होंने फिल्म 'दो भाई' के गानों में आवाज दी और देखते ही देखते उन्होंने अलग-अलग फिल्मों में अपने जादुई आवाज से कई हिट गाने दिए। उनके 'पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे', 'जाने कहां मेरा जिगर गया जी', 'चिन चिन चू', 'मुझे जान न कहो मेरी जान', 'ऐ दिल मुझे बता दे', 'वक्त ने किया क्या हसीं सितम', और 'बाबू जी धीरे चलना' सबसे ज्यादा पॉपुलर हुए थे। गीता ने अपने करियर में तकरीबन 1500 गाने गाए।
यतींद्र मिश्र लिखित किताब 'लता सुर गाथा' में लता मंगेशकर और गीता दत्त के बीच के एक किस्से को बताया गया है। दोनों ने मिलकर फिल्म 'शहनाई' के गाने 'जवानी की रेल चली जाय रे' में अपनी आवाज दी थी और उसी समय दोनों सिंगर्स की पहली मुलाकात भी हुई थी। लता जी ने जब पहली बार गीता दत्त की आवाज सुनी थी, तो वे उनकी फैन हो गई थीं। किताब में जिक्र है कि गीता आमतौर पर बंगाली भाषा बोलती थी और हिंदी का प्रयोग कम करती थीं, लेकिन जैसे ही वे माइक पर गाने के लिए आती थीं, तो उच्चारण बिल्कुल साफ हो जाता था और लहजा बिल्कुल बदल जाता था। उनके इस रूप को देखकर लता मंगेशकर भी हैरान थीं।
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