'एआई को शिक्षा का हिस्सा बनाना बेहद जरूरी,' राम गोपाल वर्मा ने उदाहरण के साथ दिया तर्क

'एआई को शिक्षा का हिस्सा बनाना बेहद जरूरी,' राम गोपाल वर्मा ने उदाहरण के साथ दिया तर्क

मुंबई, 13 नवंबर (आईएएनएस)। तेजी से बदलती तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की दुनिया में हर दिन कुछ नया हो रहा है। एआई अब फिल्मों से लेकर चिकित्सा, लेखन और शिक्षा तक हर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है।

इसको लेकर जाने-माने फिल्म निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने अपना विचार साझा किया और कहा कि मौजूदा शिक्षा प्रणाली अब खत्म हो चुकी है। आने वाले समय में जीनियस वही व्यक्ति कहलाएगा, जो एआई से सही सवाल पूछना जानता होगा।

राम गोपाल वर्मा ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स अकाउंट पर एक लंबा नोट साझा किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ''यह मानने का समय आ गया है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली अब अप्रासंगिक हो चुकी है। शिक्षा व्यवस्था उस दौर के लिए बनी थी जब जानकारी सीमित थी और याद करना ही ज्ञान माना जाता था, लेकिन अब जब हर जानकारी कुछ सेकंड में मिल जाती है, तो रटना बेकार है।''

अपने तर्क को समझाने के लिए उन्होंने मेडिकल कोर्स का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, ''एक मेडिकल छात्र को डॉक्टर बनने में लगभग दस साल लगते हैं, पांच साल एमबीबीएस में, दो साल पोस्टग्रेजुएशन में और दो से तीन साल विशेषज्ञता हासिल करने में। इस पूरे समय में छात्र शरीर के अंगों, मांसपेशियों, नसों और बीमारियों को याद करने में व्यस्त रहता है। लेकिन अब जब एक एआई लाखों मेडिकल केस पढ़कर किसी मरीज के डेटा का विश्लेषण कर सकता है और कुछ ही सेकंड में सटीक निदान और उपचार बता सकता है, तो फिर इंसान को वही सब सालों तक सीखने की क्या जरूरत है?''

उन्होंने एक जाने-माने डॉक्टर का हवाला देते हुए कहा, "आज जो छात्र मेडिकल कॉलेजों में दाखिला ले रहे हैं, वे शायद अपनी पढ़ाई पूरी होने तक ऐसे दौर में पहुंच जाएंगे जहां उनके लिए करने को ज्यादा कुछ नहीं बचेगा। यह स्थिति केवल मेडिकल क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि हर क्षेत्र के छात्रों पर इसका असर पड़ेगा।"

निर्देशक ने पोस्ट में आगे कहा, ''एआई का दौर किसी का इंतजार नहीं करेगा। न विश्वविद्यालयों का, न मंत्रियों का और न ही पुराने शिक्षा बोर्ड्स का। अगर ये सस्थाएं समय के साथ खुद को नहीं बदलेंगी तो एआई उन्हें मिटा देगा।''

उन्होंने चेतावनी दी कि इस बदलाव की सबसे बड़ी कीमत छात्रों को चुकानी पड़ेगी, क्योंकि वे वही पुराने सिस्टम का हिस्सा बने रहेंगे जबकि दुनिया आगे निकल जाएगी।

वर्मा ने कहा, ''मौजूदा शिक्षा प्रणाली केवल याददाश्त पर आधारित है, जबकि अब जरूरत सोचने, समझने और रचनात्मकता की है। अब शिक्षा में सुधार करना कोई विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता बन गया है। अगर ऐसा नहीं किया गया, तो आज के छात्र उन नौकरियों की तैयारी कर रहे होंगे जो आने वाले वर्षों में मौजूद ही नहीं रहेंगी।''

अपने सुझाव में उन्होंने कहा कि अब स्कूलों और कॉलेजों को एआई को शिक्षा का हिस्सा बनाना चाहिए। उन्होंने कहा, ''एआई को क्लासरूम और परीक्षा में प्रतिबंधित नहीं, बल्कि अपनाया जाना चाहिए। इसे धोखा नहीं बल्कि एक सहायक माना जाना चाहिए। भविष्य की परीक्षा का असली मकसद यह नहीं होगा कि छात्र क्या याद रखता है, बल्कि यह कि वह एआई की मदद से कितनी तेजी और रचनात्मकता से कोई समस्या हल कर सकता है।''

उन्होंने आगे कहा कि आने वाले सालों में एआई पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह बदल देगा; जो लोग इस बदलाव के साथ नहीं चल पाएंगे, वे पीछे छूट जाएंगे। जीनियस वही होगा जो एआई से सही सवाल पूछना जानता होगा।

--आईएएनएस

पीके/एएस

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