नई दिल्ली, 1 जुलाई (आईएएनएस)। भारत को योग और ध्यान की धरती कहा जाता है। यहां कई ऐसे संत और योगी हुए हैं जिन्होंने अपने ज्ञान से न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया को रास्ता दिखाया है। स्वामी राम भी ऐसे ही एक महान योगी थे। उन्होंने योग और अध्यात्म का डंका विदेशों में बजाया। वह उन पहले भारतीय योगियों में से थे जिन्होंने अमेरिका और यूरोप जाकर यह बताया कि योग केवल आसन या कसरत नहीं, बल्कि मन, शरीर और आत्मा को जोड़ने की शानदार विधा है।
स्वामी राम की आत्मकथा 'लिविंग विद हिमालयन मास्टर्स' बहुत प्रसिद्ध है। इसमें उनकी जिंदगी से जुड़ी छोटी से छोटी बातें शामिल हैं। इसमें उन्होंने अपने अनुभवों और उन साधुओं के बारे में भी लिखा है, जिनसे वह हिमालय में मिले थे।
उनका जन्म 2 जुलाई सन 1925 में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र के छोटे से गांव तोली में हुआ। उनकी बचपन से ही ध्यान और साधना में रुचि थी। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने हिमालय की ओर रुख किया और वहां रहकर कई सालों तक गुफाओं में साधना की। उनके गुरु ने उन्हें सिखाया कि कैसे अपने मन और शरीर पर पूरा नियंत्रण पाया जा सकता है। उन्होंने यह ज्ञान केवल अपने तक नहीं रखा, बल्कि पूरी दुनिया को इसे समझाने की जिम्मेदारी ली।
जब वह अमेरिका गए, तो उन्होंने वहां के वैज्ञानिकों के सामने अपने योग कौशल का प्रदर्शन किया। 1971 में टेक्सास में उन्होंने डॉक्टरों और मेडिकल उपकरणों की निगरानी में अपने दिल की धड़कन को खुद ही कुछ समय के लिए रोक दिया। उन्होंने पहले दिल की धड़कनों को 300 धड़कन प्रति मिनट तक बढ़ाया और फिर अचानक खून का बहाव रोक दिया। यह देख वैज्ञानिक भी हैरान रह गए।
इसके अलावा, उन्होंने यह भी दिखाया कि वह एक ही हाथ की हथेली के दो हिस्सों का तापमान अलग-अलग कर सकते हैं। उन्होंने जब दाहिने हाथ की हथेली का तापमान एक जगह ठंडा और एक जगह गर्म करके दिखाया, तो यह भी विज्ञान के लिए किसी अजूबे से कम नहीं था। साथ ही, वह अपनी इच्छा से अल्फा, थीटा और डेल्टा ब्रेन वेव्स उत्पन्न कर सकते थे, जो आमतौर पर नींद और ध्यान की विभिन्न अवस्थाओं से जुड़ी होती हैं।
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