महाराष्ट्रः हंगामेदार होगा शीतकालीन अधिवेशन

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आक्रामक विपक्ष का सामना कैसे करेगी सरकार 

सुधीर जोशी*

महाराष्ट्र राज्य विधिमंडल का शीतकालीन अधिवेशन सोमवार 19 दिसंबर से शुरु हो रहा है। एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बनी शिंदे गुट के विधायकों तथा भाजपा के विधायकों के साथ मिलकर बनी राज्य सरकार को इस शीतकालीन अधिवेशन में विपक्ष के विरोध का जोरदार सामना करना पड़ेगा। बहुत से मुद्दे पर विपक्ष राज्य सरकार को इस शीतकालीन अधिवेशन में घेरेगा, लेकिन सरकार को घेरने के लिए महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद मुख्य मुद्दा होगा। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सीमा विवाद का मुद्दा रखेंगे। 

विधानभवन में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर तथा विधान परिषद में उपाध्यक्ष डां। नीलम गोन्हे की अध्यक्षता में कामकाज सलाहकार समिति की बैठक में शीतकालीन अधिवेशन के बारे में निर्णय लिया गया। यह शीतकालीन अधिवेशन 30 दिसंबर तक सुनिश्चित हुआ हो, लेकिन अधिकृत रूप से कामकाज 28 दिसंबर तक ही चलेगा। विधानसभा में विरोध पक्ष नेता तथा राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने अधिवेशन की कालावधि दो के स्थान पर तीन सप्ताह करने की मांग की है। कोरोना महामारी की वजह से पिछले दो वर्ष राज्य की उपराजधानी नागपुर में राज्य विधिमंडल का शीतकालीन सत्र नहीं हो पाया था। इस लिहाज से 19 दिसंबर से शुरु हो रहे शीतकालीन अधिवेशन को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। शीतकालीन सत्र में सरकार तथा विपक्ष के बीच कौन कमजोर तथा कौन मजबूत है, इस बात का खुलासा होगा ही। सरकार की ओर से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के अलावा उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस विपक्ष की आवाज को दबाने में पूरी ताकत लगा देंगे। जबकि विपक्ष की ओर से मोर्चा विधानसभा में विरोधी पक्ष नेता अजित पवार सभालेंगे। महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद के सुलगते सवाल पर आक्रामक विपक्ष को माकूल जवाब देने के लिए सरकार की ओर से उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पूरी तैयारी कर ली है, जबकि विपक्ष की ओर से विधानसभा में विरोधी पक्ष नेता अजित पवार ने सरकार को घेरने की रणनीति बनायी है। 

शीतकालीन अधिवेशन में अजित- देवेंद्र की जुगलबंदी देखने लायक होगी, जबकि कांग्रेस की ओर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले मोर्चा संभालेंगे। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले भी विपक्ष के तीखे सवालों का जवाब देने की तैयारी कर चुके हैं। महाविकास आघाडी की ओर से नाना पटोले तथा अजित पवार आक्रामक भूमिका निभायेंगे, तो सरकार की ओर से देवेंद्र फडणवीस तथा चंद्रशेखर बावनकुले पर विपक्ष के करारे सवालों का जबाव देंगे। शीतकालीन अधिवेशन में 21 विधेयक सभागृह में रखे जाएंगे। अधिवेशन का कामकाज सुबह 9।30 बजे से शुरु करने की मांग विधानसभा में विरोधी पक्ष तथा राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने की है, उनकी मांग को पूरा किया गया है या नहीं यह तो अधिवेशन शुरु होने के बाद ही साफ हो पाएगा, लेकिन अधिवेशन शुरू होने से पहले ही इस बात को लेकर चर्चा होने लगी है कि दो वर्ष के अंतराल के बाद होने वाले राज्य विधिमंडल के शीतकालीन अधिवेशन में शह तथा मात की जुगलबंदी रहेगी।

 अधिवेशन के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि जिस तरह से सरकार में मुख्यमंत्री से ज्यादा उपमुख्यमंत्री आक्रामक हैं, वे ही सरकार चला रहे हैं, उसी तरह अधिवेशन में मुख्यमंत्री की तुलना में उपमुख्यमंत्री पर ज्यादा फोकस रहेगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि शीतकालीन अधिवेशन में राज्यपाल हटाओ की आवाज भी बुलंद की जाएगी। उल्लेखनीय है कि राज्य की पूर्ववर्ती महाविकास आघाडी सरकार ने 17 दिसंबर को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को पद से हटाने की मांग को लेकर महामोर्चा निकालने का निर्णय लिया है। 

17 दिसंबर को निकाले जाने मोर्चे में महाविकास आघाडी सरकार में शामिल शिवसेना-राकांपा तथा कांग्रेस इन तीनों पार्टियों के नेता शामिल होंगे। जहां एक ओर राज्य की एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सरकार अपनी अब तक की कालावधि में लिए गए फैसलों का गुणगान करेगी, वहीं दूसरी ओर विपक्ष गलत तरह से सरकार बनाने के मुद्दे पर सरकार को घरेगी। एकनाथ शिंदे सरकार के इस पहले अधिवेशन की ओर सभी की निगाहें लगी हुई हैं। 

 महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद के निपटारे के लिए दोनों राज्यों के तीन-तीन मंत्रियों की समिति का गठन किया गया है। गृहमंत्री अमित शाह तथा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच सीमा-विवाद के हल के लिए सकारात्मक बातचीत हुई है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री इस मुद्दे को कैसे लेते हैं, क्या वे इस मुद्दे पर सचमुच समाधान चाहते हैं, या फिर इस मसले को खींच कर समय व्यतीत कर रहे हैं। 

सरकार के बने रहने या जाने का मुद्दा अदालत में विचाराधीन है, इस मुद्दे पर सुनवाई के बाद जो भी फैसला सामने आएगा, उसे कितना स्वीकार्य किया जाएगा, यह भी विचाराधीन मुद्दा है। सीमा विवाद का समाधान होने के आसार इसलिए भी होता हुआ दिखायी दे रहा है कि इस मुद्दे पर केंद्र सरकार ने पहली बार हस्तक्षेप किया है। लंबे समय से इस मुद्दे को लेकर संघर्ष चल रहा है, क्या महाराष्ट्र- कर्नाटक सीमा विवाद का हल केंद्र की नरेंद्र मोदी, महाराष्ट्र- कर्नाटक सरकार के मुख्यमंत्री की आपसी सहमति से निकाला जा सकेगा, यह भी देखने वाली बात होगी। जैसा कि राज्य के उप मुख्यमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि महाराष्ट्र का एक भी गांव कर्नाटक में नहीं जाएगा, ऐसे में अधिवेशन में सरकार तथा विपक्ष दोनों ही एक ही मुद्दे पर आमने-सामने दिखायी देंगें। 

सरकार अपना पक्ष रखेगी और विपक्ष अपना पक्ष। चूंकि इस मसले पर सरकार तथा विपक्ष का लक्ष्य एक ही है, इसलिए इस मुद्दे पर श्रेय लेने जैसी स्थिति दिखायी देगी। संतों-महंतों- महापुरुषों के संदर्भ में दिए गए आपत्तिजनक कथित बयानों के कारण राज्यपाल समेत भाजपा नेताओं को निशाने पर लेने का जो सिलसिला अब तक जारी रहा, उसकी झलक शीतकालीन अधिवेशन में दिखायी देगी। जैसा कि कहा जा रहा था कि शीतकालीन अधिवेशन से पहले शिंदे सरकार के मंत्रिमंडल का विस्तार होगा, लेकिन मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो सका। बहुत संभव है कि मुख्यमंत्री ने शीतकालीन सत्र से पहले अपने मंत्रिमंडल का विस्तार इसलिए नहीं कि उन्हें अंदर ही अंदर यह भय सता रहा है कि मंत्रिमंडल में स्थान न पाने वाले बगावत न कर दें।

मुख्यमंत्री को हर हाल में अपने साथ आए विधायकों को बचाकर रखना है, किसी भी विधायक का बागी तेवर मुख्यमंत्री के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है, इसलिए मुख्यमंत्री ने शीतकालीन सत्र से पहले राज्य मंत्रिमंडल के विस्तार को टाल दिया है। मुख्यमंत्री शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट पूरी तरह से समाप्त करना चाहते हैं, लेकिन उनके समक्ष भाजपा के बढ़ते कद को कम करने की भी चुनौती भी है, ऐसे में मुख्यमंत्री को हर कदम बड़ी ही से सावधानी रखना होगा। पांच वर्ष तक राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके देवेंद्र फडणवीस के राजनीतिक अनुभव के समक्ष वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का राजनीतिक अनुभव काफी कम है, ऐसे अपना स्थायी कुनबा छोड़ चुके एकनाथ शिंदे को शीतकालीन अधिवेशन में कुछ ऐसा कर दिखाना होगा कि राज्य की जनता को इस बात का पूरा भरोसा हो जाए कि वे कमजोर तथा लाचार मुख्यमंत्री नहीं हैं।

जैसा कि पूर्ववर्ती सरकार के बारे में कहा जा रहा था कि सरकार तो मुख्यमंत्री नहीं बल्कि उपमुख्यमंत्री चला रहे हैं, बिल्कुल वैसी ही स्थिति वर्तमान सरकार के लिए भी कही जा रही है, ऐसे में मुख्यमंत्री को शीतकालीन सत्र से ऐसी छवि बनानी होगी कि सरकार पर उनका ही कमांड है। राज्य की शिंदे गुट तथा भाजपा के नेतृत्व में बनी सरकार के लिए शीतकालीन अधिवेशन ऐसा पहला मौका होगा, जब उसे विपक्ष के तीखे सवालों का जबाब देना होगा, इस कसौटी पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सफल साबित होंगे, इस बात का खुलासा अधिवेशन के उपरांत ही होगा। अब देखना यह है कि शीतकालीन अधिवेशन में विपक्ष की ओर से खड़े किए सवालों के उत्तर देने के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे कितने मजबूत होते हैं और स्वयं को उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के मुकाबले बीस साबित करने में कामयाब हो पाते हैं।  

—दैनिक हाक फीचर्स


*लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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