जीएसटी 2.0 भारतीय कारीगरों के लिए बड़ा वरदान, उत्पादों की बिक्री बढ़ी

जीएसटी 2.0 भारतीय कारीगरों के लिए बड़ा वरदान, उत्पादों की बिक्री बढ़ी

नई दिल्ली, 9 नवंबर (आईएएनएस)। अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधार भारतीय कारीगरों के लिए वरदान का काम कर रहे हैं और इससे उनके उत्पादों की बिक्री में इजाफा हुआ है और आय में बढ़त हुई है, जिससे वे फैक्ट्री में बने उत्पादों से प्रतिस्पर्धा कर पा रहे हैं।

जीएसटी 2.0 के तहत कई हैंडीक्राफ्ट उत्पादों जैसे लकड़ी के नक्काशीदार उत्पादों, टेराकोटा जूट हैंडबैग, कपड़े की वस्तुएं और चमड़े के सामान आदि पर टैक्स कम हो गया है।

असम का मूगा रेशम उद्योग, जो मुख्य रूप से सुआलकुची (कामरूप), लखीमपुर, धेमाजी और जोरहाट जिलों में संचालित होता है, राज्य भर के अन्य रेशम उत्पादन समूहों के साथ महिला बुनकरों की विरासत है। हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट वस्तुओं पर 5 प्रतिशत जीएसटी की कम दर से बुनकरों को राहत मिलेगी और इससे वे प्रतिस्पर्धी बाजारों में अपने उत्पाद बेचकर बेहतर मार्जिन कमा सकते हैं। इससे निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा।

असम के पूरे हैंडलूम क्षेत्र को जीएसटी सुधारों से लाभ होगा। 12.83 लाख से ज्यादा बुनकरों और लगभग 12.46 लाख करघों वाले राज्य में इसका प्रभाव दूरगामी होगा।

हैंडलूम और क्राफ्ट पर जीएसटी दर में कटौती से असम जापी, अशारिकंडी टेराकोटा, मिशिंग हैंडलूम, पानी मेटेका और बिहू ढोल सहित अन्य उद्योगों को भी लाभ होगा।

पश्चिम बंगाल लंबे समय से पारंपरिक क्राफ्ट और हैंडलूम के लिए जाना जाता है, जिसमें बिष्णुपुर के टेराकोटा मंदिर से लेकर नक्शी कंठ की जटिल कढ़ाई तक शामिल है। जीएसटी को 12 प्रतिशत से 5 प्रतिशत करने से इस क्षेत्र को सीधे तौर पर लाभ होगा।

जीएसटी में कटौती से हिमाचल के प्रसिद्ध हैंडलूम उत्पादों, विशेष रूप से शॉल और ऊनी वस्त्रों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। कुल्लू घाटी में, स्वयं सहायता समूहों से जुड़े 3,000 से ज्यादा बुनकर चमकीले पैटर्न वाले, जीआई-टैग वाले कुल्लू शॉल बनाते हैं।

चंबा रुमाल एक जीआई-टैग वाला लघु हस्त-कढ़ाई वाला कपड़ा है, जिसे मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की महिला कारीगरों द्वारा बनाया जाता है। इन रूमालों पर जीएसटी घटाकर 5 प्रतिशत कर दिए जाने के कारण इनकी मांग में वृद्धि होगी।

चंबा के पारंपरिक चमड़े के चप्पल भी जीआई-टैग्ड उत्पाद हैं, जिनका उत्पादन सैकड़ों छोटी कुटीर शिल्प इकाइयों द्वारा किया जाता है। कम जीएसटी से इनकी कीमतें मशीन-निर्मित जूतों के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगी और स्वदेशी चप्पलों की बिक्री को बढ़ावा मिलेगा। इससे कारीगरों को अपना मार्जिन बढ़ाने में मदद मिलेगी।

--आईएएनएस

एबीएस/

Related posts

Loading...

More from author

Loading...