मुंबई, 22 जुलाई (आईएएनएस)। दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता 2016 (आईबीसी) के लागू होने के नौ साल बाद, भारत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 26 लाख करोड़ रुपए से अधिक के ऋण का समाधान करने में सफल रहा है। यह जानकारी मंगलवार को आई एक रिपोर्ट में दी गई।
क्रिसिल रेटिंग्स द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, कुल राशि में से लगभग 12 लाख करोड़ रुपए का ऋण नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में दाखिल किए गए लगभग 1,200 स्ट्रेस्ड कर्जदारों के मामलों के माध्यम से हल किया गया।
हालांकि, आईबीसी का एक बड़ा प्रभाव डिफॉल्टिंग कर्जदारों में भय पैदा करने में रहा है, जिससे 14 लाख करोड़ रुपए के कर्ज से जुड़े लगभग 30,000 मामलों का निपटारा एनसीएलटी द्वारा औपचारिक रूप से स्वीकार किए जाने से पहले ही हो गया।
आईबीसी ने 2016 में अपनी शुरुआत के बाद से पहले की डेटर-फ्रेंडली अप्रोच को क्रेडिटर-इन-कंट्रोल से बदल दिया है।
इस बड़े बदलाव ने आईबीसी को ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी), लोक अदालतों और एसएआरएफएईएसआई जैसी पुरानी ऋण वसूली विधियों की तुलना में अधिक सफल बना दिया है।
आंकड़ों से पता चलता है कि आईबीसी के तहत औसत रिकवरी 30-35 प्रतिशत रही है, जो एसएआरएफएईएसआई के तहत 22 प्रतिशत, डीआरटी के तहत 7 प्रतिशत और लोक अदालतों के माध्यम से केवल 3 प्रतिशत की तुलना में बहुत अधिक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आईबीसी के तहत लेनदारों को दी गई फ्लेक्सिबिलिटी ने हाल के वर्षों में छोटी और मध्यम आकार की संकटग्रस्त संपत्तियों के समाधान में भी मदद की है।
वास्तव में, पिछले तीन वर्षों में सभी आईबीसी समाधान स्वीकृतियों में से लगभग 60 प्रतिशत छोटे मामलों के लिए थीं, हालांकि वे कुल ऋण का केवल 40 प्रतिशत ही थे।
क्रिसिल रेटिंग्स के वरिष्ठ निदेशक मोहित मखीजा के अनुसार, 2016 से अब तक कुल निपटाए गए ऋणों का लगभग एक-चौथाई आईबीसी के तहत निपटाया गया था।
उन्होंने कहा कि आईबीसी ने न केवल सबसे ज्यादा रिकवरी दर दी है, बल्कि कुल रिकवरी में लगभग आधे का योगदान भी दिया है।
इंफ्रास्ट्रक्चर और मैन्युफैक्चरिंग एसेट्स में निवेशकों की बढ़ती रुचि के साथ, मखीजा का मानना है कि आईबीसी ऋणदाताओं के लिए पसंदीदा मार्ग बना रहेगा।
--आईएएनएस
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