देश-विदेश के 200 छात्र-छात्राओं को जोड़ चुकी है अपने साथ,छात्रों को कर रही जागरूक
सोलन (दैनिक हाक): सोलन शहर की बेटी श्रीया गौतम देश में पुरातात्विक महत्व की चीजों को सहेजने का कार्य कर रही है। हिमाचल प्रदेश समेत देश के अन्य शहरों में श्रीया गौतम पुरातत्व महत्व की चीजों को सहेजने का कार्य कर रही है। साथ-साथ डॉक्युमेंटेशन, फोटोग्राफी और डिजिटल कंटेंट भी तैयार कर रही है ताकि इस दिशा में काम करने वाले शोधार्थियों को भी मदद मिल सकें। यही नहीं वह छात्रों पुरातत्व के महत्व के बारे में जागरूक भी कर रही है। उनकी 7 सालों की मेहनत का प्रतिफल है कि आज उनका डिजिटल ऑर्किलॉजी प्लेटफोर्म पर गूगल से अधिक मैटिरियल उपलब्ध हैं। पुरातत्व महत्व में रूची रखने वालों के लिए यह प्लेटफोर्म बेहद उपयोगी साबित हो रहा है।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ी हैं श्रीया
सोलन के शिल्ली रोड निवासी कर्नल राकेश गौतम और माता प्रो. नविता गौतम के घर श्रीया का जन्म हुआ। श्रीया की आरंभिक शिक्षा सेंट ल्यूक्स स्कूल सोलन से हुई। इसके बाद सेंट मैरी स्कूल कसौली और फिर जमा दो की परीक्षा सेंट ल्यूक्स स्कूल सोलन से हुई। जमा दो की परीक्षा के बाद श्रीया ने एमसीएम कॉलेज चंडीगढ़ में प्रवेश लिया यहां से उन्होंने ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। इसी दौरान उनका चयन इंग्लैंड की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के लिए हुआ। उन्होंने ऑर्कीलॉजी में अपनी मास्टर डिग्री कंपलीट की। इसके बाद दो साल तक उन्होंने ऑर्किलॉजी का काम सीखा और अपने मिशन पर जुट गई। उन्होंने देखा कि भारत की संस्कृति बहुत समृद्ध हैं। यहां 5वीं शताब्दी के मंदिर भी मिलते हैं। उन्होंने इस दिशा में काम करने का मन बना लिया।
2015 से जुटी है इस कार्य में...
श्रीया गौतम ने जून 2015 में स्पीकिंग ऑर्किलॉजी नाम से एक संस्था बनाई और इस संस्था में देश-विदेश के आर्किलॉजी से जुड़े लोगों को शामिल किया। यहां तक की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर, जिनसे श्रीया ने खुद शिक्षा ग्रहण की उनको भी अपने साथ जोड़ा। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने साइट्स, म्यूजियम और अन्य पुरातत्व महत्व के स्थानों का दौरा किया, लोगों को इसके रखरखाव के बारे में जागरूक किया।
क्या काम कर रही है स्पीकिंगऑर्किलॉजी...
श्रीया गौतम ने बताया कि उनकी संस्था स्पीकिंग ऑर्किलॉजी के चार विंग है। पहला विंग है सिटीजन ऑर्किलॉजी,दूसरा विंग है वर्कशॉप। इसके माध्यम से वर्कशॉप का आयोजन किया जाता है। इसके माध्यम से शॉट टर्म कोर्सिज भी करवाए जाते हैं। तीसरा है आर्ट विंग इस विंग के माध्यम से ऑर्किलॉजी ड्राइंग कैसे बनाई जाती है, इस बारे में जागरूक किया जाता है। चौथा विंग है रिसर्च। उन्होंने बताया कि रिसर्च विंग के माध्यम से पुरातात्विक महत्व की साइट्स,म्यूजियम आदि पर शोध किया जाता है। वर्ष 2018 से अपनी सालभर की गई शोध पर स्पीकिंग ऑर्किलॉजी एक पुस्तक का प्रकाशन कर रहा है। पहली किताब में चंबा के रूमाल और पुरानी कपड़े बनाने की विधि, पंजाबी हवेलियों में कूलिंग सिस्टम,गरूड़ आदि को प्रमुखता से स्थान मिला है। दूसरी बुक में दिल्ली की बांबडिय़ों, चैत्रू का स्तूप और भारत व पाकिस्तान के स्तूप का विस्तार से वर्णन किया गया है। साथ ही हमारी प्राचीन लीपियों खरोष्ठी, टांकरी समेत हिमाचल की प्राचीन समय में पहने जाने वाली ज्वैलरी पर भी काम किया है।
20 बच्चों के साथ शुरू किया था काम
श्रीया गौतम ने बताया कि उन्होंने 20 बच्चों से इस कार्य को शुरू किया था और अब तक देश-विदेश के 200 युवा उनके साथ जुड़ चुके हैं। इनमें भारत के अलावा इंग्लैंड, पाकिस्तान, बंग्लादेश व अन्य देशों के युवा शामिल हैं। उन्होंने बताया कि अब तक स्पीकिंग ऑर्किलॉजी पुरातत्व की 2000 साइट्स और 500 म्यूजियम को कवर कर चुका है। उन्होंने बताया कि उनके डिजिटल ऑर्किलॉजी प्लेटफोर्म पर गूगल से अधिक मैटिरियल उपलब्ध हैं। इतना बड़ा कार्य करने पर भी अभी तक श्रीया ने कोई भी सरकारी मदद नहीं ली है, जो अपने आप में एक मिसाल है।
कैसे सहयोग दें आम
आदमी श्रीया ने कहा कि हिमाचल में प्राचीन राजमहलों, मंदिरों में बने भत्तिचित्र खराब हो रहे हैं। उन्होंने सुजानपुर टिहरा के नरवदेश्वर मंदिर का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि लोग इन भत्तिचित्रों को खराब कर रहे हैं, जिसका संरक्षण जरूरी है। लोग मंदिरों में जाएं तो प्राचीन मूर्तियों के ऊपर प्रसाद न चढ़ाएं और न ही उन्हें टच करें। इससे बहुत सी प्राचीन मूर्तियों खराब हो चुकी या टूट चुकी हैं। यह हमारी धरोहरें हैं और इनका संरक्षण करना हम सभी का नैतिक दायित्व हैं ताकि आने वाली पीढिय़ां इन्हें अपनी आंखों से देख सकें। उन्होंने कहा कि आम आदमी के जागरूक होने से ही हम पुरातत्व महत्व की चीजों को संरक्षण कर सकते हैं।