अन्तर्जलीय पुरातत्व स्कंध ने द्वारका में अन्वेषण शुरू किया

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने द्वारका जल में अंतर्जलीय अन्वेषण शुरू किया
Underwater Archaeology

नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अपर महानिदेशक (पुरातत्व) प्रो. आलोक त्रिपाठी के नेतृत्व में पांच पुरातत्वविदों के दल ने द्वारका के तट पर अभूतपूर्व अंतर्जलीय अन्वेषण शुरू किया है। पुरातत्वविदों के इस दल में एच.के. नायक, निदेशक (उत्खनन और अन्वेषण), डॉ. अपराजिता शर्मा, सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद्, सुश्री पूनम विंद और राजकुमारी बारबीना भी शामिल हैं। इस दल ने प्रारंभिक अन्वेषण के लिए गोमती क्रीक के पास एक क्षेत्र का चयन किया है। एएसआई में यह पहली बार है, जब किसी दल में बड़ी संख्या में महिला पुरातत्वविद शामिल की गई हैं तथा सबसे अधिक संख्या में पुरातत्वविदों द्वारा पानी के अंदर अन्वेषण में सक्रिय रूप से भाग लिया जा रहा है। यह अंतर्जलीय अन्वेषण, एएसआई के नवीनीकृत अन्तर्जलीय पुरातत्व स्‍कंध (यूएडब्ल्यू) के अंतर्गत किया जा रहा है, जिसे हाल ही में द्वारका और बेट द्वारका (गुजरात) में अपतटीय सर्वेक्षण और छानबीन करने के लिए पुनर्जीवित किया गया है। यूएडब्ल्यू 1980 के दशक से अंतर्जलीय अन्वेषण शोध में सबसे आगे रहा है। 2001 से, यह स्कंध बंगाराम द्वीप (लक्षद्वीप), महाबलीपुरम (तमिलनाडु), द्वारका (गुजरात), लोकतक झील (मणिपुर) और एलीफेंटा द्वीप (महाराष्ट्र) जैसी जगहों पर अन्वेषण कर रहा है। यूएडब्ल्यू के पुरातत्वविदों ने अन्तर्जलीय सांस्कृतिक विरासत के अध्ययन और संरक्षण के लिए भारतीय नौसेना (आईएन) और अन्य सरकारी संगठनों के साथ भी सहयोग किया है। इससे पहले अन्तर्जलीय पुरातत्व स्कंध ने 2005 से 2007 तक द्वारका में अपतटीय और तटीय उत्खनन किया था। कम ज्वार के दौरान तटीय क्षेत्रों की छानबीन की गई थी, जहां मूर्तियां और पत्थर के लंगर पाए गए थे। उन खोजों के आधार पर, अन्तर्जलीय उत्‍खनन किया गया। वर्तमान अन्तर्जलीय अन्वेषण भारत की समृद्ध अन्तर्जलीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के एएसआई के मिशन के तहत एक महत्वपूर्ण कदम है। —पीआईबी


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